Friday, March 30, 2012

ये कौन है....?





ये कौन है जो मुझे जिन्दा रखे है, मेरे मुख से बोले, मेरी निगाहों से निगाह भरे है,
ये कौन है जो मैं चाहूँ वो करे है, मैं खींचता रस्सी कुँए की, वो पानी भरे है,


ये कौन है मेरा अपना, मुझसे ही पर्दा करे है,
एहसान किये जाए मुझपर और मासूम बने है,
ये कौन जो रोके गुनाहों से, मेरा मुंसिफ बने है,


दीवाना करके भी ना छोड़ेगा शायद, दुश्मन भी अपना सा लगे है,
झूठ की मुश्क आई रिश्तो के पुलाव से, कौन पराये कौन सगे है,
ये कौन है जो मेरे सोने के बाद भी, भीतर जगे है,


ये कौन है जो मांगे नहीं कुछ भी कभी, बेशुमार प्यार करे है,
इन खाली कब्रों को इंतज़ार है उन लम्हों का, जो एक-एक कर मरे है,
खंडहर के अँधेरे कोनो से क्या डरना, ये जो उजाला करे है,


मुझे मेरे घर का वो तहखाना मिल गया दोस्तों,
जहाँ हर कोई जाने से, न जाने क्यों डरे है,


ये कौन है....?
-मनीष 




Wednesday, March 28, 2012

खुदा के वास्ते



खुदा के वास्ते चुप ना रहो खुदा की तरह,
इकरार ना कर सको तो इशारा ही कर दो इनकार की तरह,
करार दिल को आये जो तुम तवज्जो दो,
बरसे नहीं कोई गम नहीं, मगर छाये तो बादल की तरह, 

सवाले इश्क नहीं अहम् मुझे ऐ महबूब,
तेरे लब हिले बस, और फूल बिखर जाए खुशबू की तरह, 

वादे पर मेरे ऐतबार करो, उसे दर्द ना होगा,
जो मुझमे रहता है मगर बिल्कुल नहीं है मेरी तरह,

शिकायत वो करें जो तुम्हे चाहें और पा ना सकें,
हमने तुम्हें कब खोया, अपनी तन्हाइयों की तरह,

हमने जाना है की इश्क नहीं मरता, मरते इन्सां है,
तुम ना कहो तो सही, हम भी देखेंगे कि ये जान जाएगी किस तरह,

खुदा के वास्ते चुप ना रहो खुदा की तरह...

- मनीष 




आओ फूलों का हार बनाये




तुम खुशियों के लिए यत्न करोगे, तो स्वयं दुःख धुएं में घिरा पाओगे, 
मत रखो रौशनी में सदा रहने की चाहत, काली परछांई को न्योता दे आओगे,


डर मौत से, जीवन से प्यार क्यों दोस्तों, 
आओ फूलों का हार बनाये उसके लिए, जिसे एक दिन गले से लगाओगे,
पानी से रोज़ नहाने वालों, दिल से कब नहाओगे, 
फूल खिला नहीं है तुम्हारे खुश होने के लिए,
संदेश दे रहा तुम कमल सा कब खिल पाओगे,


ओ बहते दरिया, अपना हुनर मत पूछो तुम,
जिधर भी चल पड़ोगे, नया रास्ता बनाओगे,
निर्लज्ज क्रोध में, शर्म प्यार में है कैसे कहो,
उलटी रीत चलाकर देखो, तुम मसीहा बन जाओगे,
बाग़ में फूल उसको अर्पित है पहले ही से,
तुम तोड़ कर उसे फिर मंदिर में चड़ा आओगे,


तारीफ़ न करो तुम उसकी, उसका नृत्य देखकर,
खुश होना ही होगा उसे, जब तुम नृत्य बन जाओगे,
एक गोरा एक काला बच्चा, गम-खुशियों में भेद है क्या,
अंग लगा दोनों को चुमों, अच्छे पिता बन जाओगे,


आओ फूलों का हार बनाये उसके लिए,
जिसे एक दिन गले लगाओगे.


-मनीष 





Monday, March 26, 2012

अरे वाह रे दीवाने...!





एक हुजूम लोगों का खड़ा नेता की झलक पाने,
पर वो दीवाना भीड़ से अलग लगा पेड़ की शाख हिलाने,




रास्ता जाम, नारों का शोर, रही भीड़ थी चिल्लाने,
अन्जान सबसे अलग, वो लगा पत्तों की बारिश में नहाने,
यहाँ जूनून कुछ कर गुजरने का, वहां बच्चों के साथ खिलौने,
बेतहाशा दौड़ी भीड़ जब, पुलिस लगी लाठी बरसाने,
रौंद गई और कुचल गई बच्चे को, लगी अपना आप बचाने,


टूटी ऊँगली, मुंह के दांत, लगा खून था आँख से आने,
बेपरवाह वो दीवाना खड़ा हुआ और गिर पड़ा,
पैर उसके लगे थे लड़खड़ाने,
पड़ने लगी लाठियां उसपर, पर दिए न पत्ते हाथ से जाने,
एक आतताई पकड़ा गया, अब खबर लगी थी आने,
उसको सुना ना किसी ने , ना आया कोई छुड़ाने,
दबी आवाज़ में बुदबुदाया "मुझे, मेरे पत्ते दो उठाने",
पर सुनते कहाँ है सयाने, ले गए जेल की हवा खिलाने,
बरसों बीत गए बात हुए,  बीते कई ज़माने,
लेकिन आज भी वो सूखे पत्ते, रखकर सोता है सरहाने,
अरे वाह रे दीवाने...!
वाह वाह रे दीवाने...!
वाह दीवाने...!




Friday, March 23, 2012

आज 'मैं' मर गया


चलो अच्छा ही हुआ कि आज 'मैं' मर गया,
वो जो अपना था ही नहीं कभी गुजर गया,

मैं जब पैदा हुआ  बेसबब रोया किया,
मिला माँ का प्यार आँचल में पसर गया,
लड़कपन की दुनिया हंसी खिलोनों के साथ,
नए चेहरों की तलाश, दोस्ती दुश्मनी में उलझ गया,
आई एक महक यौवन के गुलिस्तां से,
समझ न पाया प्रेम, मुंह के बल फिसल गया,

समाज की  रिवायतें, फ़र्ज़ की बेल बढ़ी,
जब होश संभाला, विवाह बंधन में बंध गया,
'मैं'ने देखा 'मैं' की सियासत चारों तरफ थी फैली,
औलाद हुई तो मैं ने जाना 'मैं' ने फिर से जन्म लिया,
मैं ने मैं को गले लगाया और ख़ुशी का गीत गया,
मैं अपनी ही गोद में सुख सपनो में खो गया,

एक फेरीवाला कोई मतवाला गली में आया और  चिल्लाया,
मैं ने पूछा उसके लिए वो क्या कुछ था लाया,
दिखा के आईना वो मुस्कुराया, देख के उसे मैं हंस ना पाया,
था वो जादूगर, जादू सा कर गया,
ईधर मैं था खड़ा न सांस रुकी न तडपा, लेकिन मर गया,

चलो  अच्छा ही हुआ जो था नहीं अपना, अपने घर गया,
आज मैं मर गया,
हाँ.... आज 'मैं' मर गया




Wednesday, March 21, 2012

हैरान हूँ





हैरान हूँ ये खिला फूल देखकर,
जाने तुम्हे क्योंकर अचम्भा नहीं होता,
ये जां का बीज बोटा है कौन, पता नहीं,
असल तो मौत है उसका सदमा नहीं होता,
मंजिल से वाकफियत है पुरानी मेरी, पर,
ये राहगुज़र क्यों है बयां नहीं होता,
तुम्हे रूखसत करूँ तो कैसे करूँ मनीष,
जहाँ मैं हूँ वहां कोई जुदा नहीं होता
-मनीष 




ऐ खुदा तू ही बता


ऐ खुदा तू ही बता कि मैं क्या करूँ
कैसे इस इश्क कि इन्तेहाँ करूँ,
इतना बेगैरत नहीं कि जिन्दगी तेरे नाम करूँ,
तेरी ही दी हुई चीज़ कैसे तुझे अदा करूँ,
मन कि हुस्नो-अदा का तेरे कायल हुआ हूँ,
आशिक तो मैं भी हूँ कैसे तुझे सलाम करूँ,
तुने खुद ही तो प्रेम आगोश में बांध रखा है,
फिर मुझसे क्यों पूछे है कि क्या करूँ


-मनीष 




Monday, March 19, 2012

क्यों सूरज को दीपक दिखा रहा है


वो जो पन्ना है तुम्हारी अंगूठी मैं, तुम्हारी शानो-शौकत बढ़ा रहा है,
मगर ये पन्ना मेरी जिंदगी की किताब का, मुझे मसीहा बना रहा है,
तुम हँसते हो मेरी मुफलिसी पर, मुझे तंगदिली पर तुम्हारी रोना आ रहा है,
ऐ मौला मेरे छोड़ मुझे तू इसे बक्श, ये जो चाँद पे इख्तियार पा रहा है,
तेरा नूर-ए-करम ही काफी है मुझ पर, क्यों पैबंद पे मेरे चार चाँद लगा रहा है,
ए बन्दे अब तो कुछ एहसान कर खुद पर, 'उसे देख' जो तुझे आईना दिखा रहा है,
तरन्नुम-ए-मुहोब्बत मेरे संग गुनगुना, छोड़ बेकार की बात,
क्यों सूरज को दीपक दिखा रहा है.
-मनीष 




Saturday, March 17, 2012

अब बस भी करो


अब बस भी करो, इस दोस्ती मैं दरार आने दो,
बन जाओ दुश्मन मेरे मुझे दुश्मनों पे प्यार आने दो,
और चाह न करो वफाओं की मुझसे,
बेवफाइयों की बहार आने दो,
सुख की फुहारों का मज़ा ख़तम हुआ जाता है,
दुःख की आग में नहाने दो,
मीठे से जी मत्लाता है अब,
मुझे नीम के पत्ते खाने दो,
क्यों कर जागता रहूँ दिन की रोशनइयों में सदा,
मुझे रात की आगोश में सो जाने दो

- मनीष




The Crying Drop


Today, I was about to take my bath. I heard a crying voice and noticed a drop of water was crying from the tap. I took him on the top of my middle finger and asked "what happened to you?" He sobbed and said "...I am nothing...!" I condolences him and said "Yes! you are no-thing, but why this 'nothing' have grief and cry!!!" He was amazed to hear that "Oh! Sir, please tell me, why should I live, why I am and what for?" I told him "Don't underestimate yourself, you are the 'life' for each and every creature. you are not this tiny drop only, but an omnivores kind of thing". He said in a depressed voice "No, sir you are wrong, I know my tininess, I know my limitations, I know my boundaries, I am like puppet of this nature force. Everybody use me for his/her/its life. Do you think I am living my life as I want?". "Oh! my life" I said "No one can live his life with his own desire. Air is not blowing for itself. River is not flowing for itself. Trees and plants are not growing for themselves. Everyone and everything doing something for another one and another thing!". The drop replied "I don't understand what are you saying". "Just hold on" I said and put him in the bucket which was already filled with water. He at once disappeared. I asked him "where are you? I can't see you?" A voice came from the bucket "What is this sir, I am here in front of you". "But where?" I was looking for a single drop in the water. The voice "Oh! come on sir; what are you looking for, I am this big drop now shaped as this bucket, why are you searching for a tiny drop in this bucket size big drop?"



I smiled and said "There you are! do you feel any difference?" He said Not actually! but I have just became this bucket". I asked "What if put this bucket, I mean yourself in a River?" "I would be the River...!" He seemed astonished. His eyes were brightened , he at once shouted "Oh! my God, I am the ocean". I smiled and said "... and you are nothing too...". He said "Yes sir, you are right, I an nothing too and that's why I am infinite too. I am so grateful to you ...!!!" I stopped him and said "No, dear I am grateful to you for being my life.... I love you". He was crying now with joy he replied again "... I love you too... now let me do my duty and you to yours."

I took my bath.
-Manish




Thursday, March 15, 2012

'मैं' न होता तो

खुद न था तो कौन था?
खुद न होता तो क्या होता?
खुदी को क्यों कर बुलंद किया बन्दे?
ये 'मैं' न होता तो क्या होता?


न गम के सेहरा न  बिछुड़ने का आलम,
न रोती हुई बेवा कोई न अनाथ कोई बच्चा होता,
न बेवफाई का दाग किसी को,
न वफाओं की जंजीरों में बंधा होता,
न बादशाह गुलाम संत-फकीर कोई बना होता,


न नमाज़ की बंदिशे न पूजा की ख्वाहिशे,
न सकूं पाने का ही कोई सबब होता,
न इतनी भाषाएँ न धर्म इतने,
न इंसान इतना पेचीदा होता,


तू न तू होता, मैं न मैं होता,
न तू होता, न मैं होता,
एक रूहानी मस्ती होती सब तरफ,
न कोई ऊपर न नीचे कोई  होता,


मैं बनता तू खाता तू सुलाता मैं सोता,
यहाँ जो मिला सब अपना होता,
न तेरे घर खुशियाँ होती,
न मेरे घर मातम होता,


क्या तू न पुचकारता मुझे जब जब मैं रोता,
क्या मैं न हँसता जब तू हँसता होता,
मरता मैं भी जब तू मरता,
ऐसा होता तो क्या अनर्थ होता,


ये 'मैं' न होता तो क्या होता,
ये खुद न होता तो बस...... खुदा होता,
हाँ .... बस खुदा होता...


-मनीष 




A flower is not its leaf...

A flower is not its leaf or smell, A room is not its wall or furniture, A body is not its organs, an earth is not seasons, nature or creatures on it... but still they are known as.


Likewise... GOD is not which can be define or indicated but still there is, as always.


- Manish




Wednesday, March 14, 2012

प्यारी धुप

ऐ सुनहरी, चमकती, सताती धुप,
मेरे नंगे बदन को झुलसती धुप,
पैरों को जलाती, छालों सी चुभती,
नश्तर सी धुप...
गले को सुखाती, तडपाती, 
पानी याद दिलाती धुप...
तुझे लाखों करोडो धन्यवाद!
मेरे डगमग करते पाँव,
जो तू न होती ऐ प्यारी धुप,
मुझे याद न आती छाँव!
- मनीष




Monday, March 12, 2012

To oppose something is equal to invite something...

                Oppose <=> Invite

People oppose their anger to get rid off, but do they invite their anger? No, it just happens. Likewise they can not invite peace.... It just happens.

                                                             
- Manish




लोग सुनते कहाँ है

ये मत कहो की हम चुप रहते हैं,
लोग सुनते कहाँ है जब हम कहते हैं,
क्यों प्यासे प्यासे चिल्लाते हो,
देखो हम सागर में रहते हैं,
मुझे दवा देने से परहेज़ कहाँ है दोस्तों,
तुम जानो तो की हम बीमार रहते हैं,
सदियों से वोही एक सवाल लोगों ने पूछे मुझसे,
हम कहते नहीं थके लोग सुनके थक रहते हैं,
प्यास बता देगी तुम कितना पानी पियोगे,
चूक ना जाना सुनो जो ये सन्नाटे कहते हैं,
लोग पागल कहें, फेंके पत्थर मुझ पर, समझे नहीं क्यों,
 तुम्हारा मोहल्ला रोशन करने को ही हम अपना घर जलाये रहते हैं,
मेरे कटोरे के कंकरों को हँसते लोग देख मैं हैरान हूँ,
वैसे ही तो है ये भी जैसे वो अंगूठी में पहना करते हैं,


ऐ खुदा तू इनकी दुआएं कबूल क्यों करता है,
ये भूल ही जाते है जब दैरो-हरम में बसते हैं,
मैं जो चुप हूँ बस नमाज़ कि अदायगी बदल ली मैंने,
काफ़िर नाखुदा हो गया हूँ लोग समझ लिया करते हैं,
नया जितना उतना ही पुराना मेरा धर्म सभी में आम है,
जब दिल ईबादत का होता है तो पानी पी लिया करते हैं,
गोया चुप कहाँ रहते हैं हम तो दुआ मांगते रहते हैं,
लोग सुनते कहाँ हैं जब हम कुछ कहते हैं
 - मनीष




Friday, March 9, 2012

तुम्हे याद तो आती होगी

ये मरमरी हवा क्या तुम्हे, नहीं मेरा अहसास कराती होगी,
शब उतर आये जब, तुम्हे हिचकियाँ तो आती होगी,
मुद्दत से सोच रहा हूँ, तुम्हे याद न करूँ,
ये हिचकियाँ शायद तुम्हे सताती होगी,
मेरे सूने मकान की चोखट पर तुम्हारी टूटी चूड़ी,
शायद आज भी कोई भटकी किरण, उसे चमकाती होगी,
वो जो प्रेम गीत गाया था मैंने तुम्हारे लिए,
लरजते होटों से कभी गुनगुनाती तो होगी,
समझ सकता हूँ तुम्हे वक्त नहीं मिलता होगा जीवन की परेशानियों से,
पर मेरे मरने की सालगिरह तो मनाती होगी,
मैं मुआफी चाहता हूँ राह की ठोकरों के लिए मगर,
तुम आज भी कब्र पर मेरी दिया तो जलाती होगी,
तुम्हे मेरी याद तो आती होगी...


   -मनीष