मैने रस्ता दिल से निकलते देखा है,
पत्थर के मकां से इंसान तो नहीं, मगर,
पौधा पत्थर से निकलते देखा है,
तूमने अंगारो को राख बनते देखा होगा,
मैने हैवान का दिल पिघलते देखा है,
तूम पेट की आग से डरे बैठे हो,
मैने तंदूर में इंसान जलते देखा है,
कोई बताए चांद का रात से रिश्ता क्या है,
मैनें मेहबूब को भरी दोपहर निकलते देखा है,
उसे क्या देखूं जो कीचड में फिसल गया,
मैने इंसान दौलत पर फिसलते देखा है,
जो कभी डरता था अपने ही साये से,
उसे भी भीड में चीखते चिल्लाते देखा है,
ना जाने कौन घडी बेवा गुजर गई, भीख मांगते,
भरे बाजार उस लाश पर, बच्चा बिलखते देखा है,
इस 'बेहया' शराब का अंदाजा नहीं मनीष, पर
मयखाने में लोगो को संभलते देखा है,
तूम्हे गुमां है कि चिल्ला कर बात मनवा लोगे,
मैने चुप रहकर इंसान बदलते देखा है,
आले में सिमटकर रह गया है, घर का मंदिर,
आज बाजार में मैनें, भगवान निकलते देखा है,
शुक्र है तुम मौत आने तक जिंदा रहे,
मैनें मौत से पहले इंसान मरते देखा है.
- मनीष
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