अपनों में अपनापन देख लिया, जब बुरा वक्त आया,
उजाले तक ही साथ रहा, अपना ही हमसाया,
कोरे कागज पे दो नाम लिखे थे, एक तेरा एक मेरा,
कोई शोला नामुराद जाने कहां से, वो सफा ही जला आया,
थोडी आग भी जरूरी थी, घर रौशन करने को, मगर,
हमारी आंख क्या लगी, जमाना उसे भडका आया,
तुम मिलती हो मुस्कुराकर हमेशा, उसी मंदिर में मुझे,
कल रात भी, हर रोज की तरह, फिर वही ख्वाब आया,
मै धूप गगन की तुम ममता की छांव, कई जन्मों का नाता,
अपने आंगन के फूल को देखो, बिना धूप कुम्हलाया,
एक कश्ती के हम दो मांझी, तुम बायां मै दायां,
इम्तिहान की घडी आई, आ जाओ, देखो मौसम खराब आया.
-मनीष
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