Tuesday, May 1, 2012

अब तो शराब आये


इन आती जाती साँसों को करार आये,
उस घडी जब मिलने मेरे सरकार आये,
जंवा खून रगों में गर्दी करता रहे मगर,
महताब भी बन जाए जब बहार आये,

मस्जिद के सामने सर उठा बेशक निकल जाना,
पर झुका देना जब आशिक की मज़ार आये,

हैवानियत से काम लेना तुम्हे अच्छी तरह आ गया,
मगर इंसान बन जाना जब सामने कोई इंसान आये,

होश संभाल के चलना रिश्तों की राहों में दोस्तों,
सजदा वालिदा को जरूर करना जब त्यौहार आये,

तुम पत्थर के घरों में पत्थर-दिल मत हो जाना,
परखना मत उसे जब तुम्हे कोई दिल देने आये,

लोग खुदा से शिकायत करे है, पर वो करे किससे,
उसके दर पे तो जो भी आये, बस मांगने आये,

उसने हर ख्वाहिश पूरी की थी, जो जब मेरा नहीं था,
न जाने क्यों, निकाह में आखिरी कबूल पर हिचकिचाए,

वो उजड़े ही नहीं कभी जो दिलो में बस गए,
घरों में रहने वाले सब, खाना खराब आये,

बहुत जहर उगला जिसने भी जुबान खोली,
मुंह का जायका बदलने को अब तो शराब आये.

-मनीष 




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