मुसलमा मिले तो सलाम, हिन्दू को राम-राम कीजिये,
पर्चे हैं इम्तिहानों के देने सभी को अपने अपने अल्फाजों में,
नतीजा ना हक़ में सही, औरों को नाहक ना परेशान कीजिये,
लड़िये बच्चों की तरह, फिर भूल जाइये और आराम कीजिये,
शिकायत शर्म के पर्दे में, मगर मुहोब्बत सरेआम कीजिये,
मंदिर में अज़ान सुबह, मस्जिद में आरती हर शाम कीजिये,
नश्तर सी चुभे दिल में, न वो बात, ना वो काम कीजिये,
ऐ परवरदिगार, हम समझदारों को थोडा नादान कीजिये..
- मनीष
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