चंद मदहोश युवक, एक बूढ़े को ताना मार गए,
वो मिटटी के दिए थे, जो बिजली से हार गए,
सदियों से सेहरां में तूफ़ान भटक रहा बेसबब,
जो आँधियों में जलते थे चिराग, सब बेकार गए,
इमारतों ने दरख्तों की जगह छीन ली है दोस्तों,
दिल जलते है अब, दिए जलने वाले त्यौहार गए,
हज़ारों फूल उनकी राहों में बिछाए थे हमने,
फकत एक कांटा क्या दिखा, वो हो नाराज़ गए,
तुमने ठीक किया जो उनकी मूर्तियाँ चौराहों पे लगा दी,
अब ये गम तो नहीं कि सभी के मरने बेकार गए,
कोई गाँव में बता ना पाया उस बुजुर्ग का पता,
वो 'ईमान' साहिब थे, शायद परलोक सिधार गए,
हाँ मैंने भी दौलत जमा की थी बुरे वक़्त के लिए,
चंद दुआएं बची है, वो लौटी ही नहीं जो उधार गए,
तुम बिलकुल सही कहते थे कबीर मेरे दोस्त,
लोग बदन का चमड़ा चाहेंगे, लो सब हो चमार गए,
बहुत मेहेंगे है फूल, तुम दूर से दूर से देखो और ललचाओ बच्चों,
तुम्हें एक ना मिलेगा, मंदिर में हो बेशुमार गए,
सरकारी खुदा ने फरमान भेजा है, तेरे गुनाह बताने को,
पर तू सयाना जानता है, खुदा के चढ़ावे हो हज़ार गए.
- मनीष
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