Sunday, April 22, 2012

आदत से मजबूर



आदत से मजबूर है हर कोई,
कुछ न कुछ तो जरूर मांगे है,
पर हेरान हूँ ये जानकार,
ये सब क्या मांगे है...

कौओं को मिले श्राद्ध, सो तुम्हारे मरने की दुआ मांगे है,
मस्जिद में भी बैठकर ग़ालिब, शराब मांगे है,
खुदा के घर में जा लोग, दौलत मांगे है,
नफरत बांटे है दोनों हाथो से और प्यार मांगे है,
 
इंसान को इंसान से उम्मीद नहीं, कुत्तो से वफ़ादारी मांगे है,
दूसरों को जानवर कहें और खुद उनकी खाल मांगे है,
बेशुमार दौलत दी भगवान् ने, पर प्यार मांगे है,
जिनके पास वो अक्ल से अंधे, बाकी सब आँख मांगे है,
 
सब करें है लड़के पैदा, मगर लड़की मांगे है,
हिन्दू राम-भक्त से बल और शक्ति मांगे है,
मुसल्मा बकरे के बदले, दोनों जहान मांगे है,
भगवान् हाथ बाँध तुम्हारे कर्मों का हिसाब मांगे है,
खुदा है या दूकानदार जन्नत के बदले नमाज़ मांगे है,
 
महफ़िल में जा कर भी लोग मज़ा मांगे है,
मंजिल पे पहुँच कर हर कोई फिर सफ़र मांगे है,
जाने है रात बिन नहीं होता पर दिन मांगे है,
बीत गया जो, वो बचपन और जवानी मांगे है,
नोका मिले तो खिवैया, सागर मिले तो पानी मांगे है,
 
आदत से मजबूर सब, कुछ न कुछ तो जरूर मांगे है,
पर जो भी मांगे है अजीब मांगे है....
-मनीष




No comments:

Post a Comment