Friday, March 9, 2012

तुम्हे याद तो आती होगी

ये मरमरी हवा क्या तुम्हे, नहीं मेरा अहसास कराती होगी,
शब उतर आये जब, तुम्हे हिचकियाँ तो आती होगी,
मुद्दत से सोच रहा हूँ, तुम्हे याद न करूँ,
ये हिचकियाँ शायद तुम्हे सताती होगी,
मेरे सूने मकान की चोखट पर तुम्हारी टूटी चूड़ी,
शायद आज भी कोई भटकी किरण, उसे चमकाती होगी,
वो जो प्रेम गीत गाया था मैंने तुम्हारे लिए,
लरजते होटों से कभी गुनगुनाती तो होगी,
समझ सकता हूँ तुम्हे वक्त नहीं मिलता होगा जीवन की परेशानियों से,
पर मेरे मरने की सालगिरह तो मनाती होगी,
मैं मुआफी चाहता हूँ राह की ठोकरों के लिए मगर,
तुम आज भी कब्र पर मेरी दिया तो जलाती होगी,
तुम्हे मेरी याद तो आती होगी...


   -मनीष





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