एक हुजूम लोगों का खड़ा नेता की झलक पाने,
पर वो दीवाना भीड़ से अलग लगा पेड़ की शाख हिलाने,
रास्ता जाम, नारों का शोर, रही भीड़ थी चिल्लाने,
अन्जान सबसे अलग, वो लगा पत्तों की बारिश में नहाने,
यहाँ जूनून कुछ कर गुजरने का, वहां बच्चों के साथ खिलौने,
बेतहाशा दौड़ी भीड़ जब, पुलिस लगी लाठी बरसाने,
रौंद गई और कुचल गई बच्चे को, लगी अपना आप बचाने,
टूटी ऊँगली, मुंह के दांत, लगा खून था आँख से आने,
बेपरवाह वो दीवाना खड़ा हुआ और गिर पड़ा,
पैर उसके लगे थे लड़खड़ाने,
पड़ने लगी लाठियां उसपर, पर दिए न पत्ते हाथ से जाने,
एक आतताई पकड़ा गया, अब खबर लगी थी आने,
उसको सुना ना किसी ने , ना आया कोई छुड़ाने,
दबी आवाज़ में बुदबुदाया "मुझे, मेरे पत्ते दो उठाने",
पर सुनते कहाँ है सयाने, ले गए जेल की हवा खिलाने,
बरसों बीत गए बात हुए, बीते कई ज़माने,
लेकिन आज भी वो सूखे पत्ते, रखकर सोता है सरहाने,
अरे वाह रे दीवाने...!
वाह वाह रे दीवाने...!
वाह दीवाने...!
Superb...........Very Nice Bhaiya....
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