कैसे इस इश्क कि इन्तेहाँ करूँ,
इतना बेगैरत नहीं कि जिन्दगी तेरे नाम करूँ,
तेरी ही दी हुई चीज़ कैसे तुझे अदा करूँ,
मन कि हुस्नो-अदा का तेरे कायल हुआ हूँ,
आशिक तो मैं भी हूँ कैसे तुझे सलाम करूँ,
तुने खुद ही तो प्रेम आगोश में बांध रखा है,
फिर मुझसे क्यों पूछे है कि क्या करूँ
-मनीष
No comments:
Post a Comment