Friday, March 23, 2012

आज 'मैं' मर गया


चलो अच्छा ही हुआ कि आज 'मैं' मर गया,
वो जो अपना था ही नहीं कभी गुजर गया,

मैं जब पैदा हुआ  बेसबब रोया किया,
मिला माँ का प्यार आँचल में पसर गया,
लड़कपन की दुनिया हंसी खिलोनों के साथ,
नए चेहरों की तलाश, दोस्ती दुश्मनी में उलझ गया,
आई एक महक यौवन के गुलिस्तां से,
समझ न पाया प्रेम, मुंह के बल फिसल गया,

समाज की  रिवायतें, फ़र्ज़ की बेल बढ़ी,
जब होश संभाला, विवाह बंधन में बंध गया,
'मैं'ने देखा 'मैं' की सियासत चारों तरफ थी फैली,
औलाद हुई तो मैं ने जाना 'मैं' ने फिर से जन्म लिया,
मैं ने मैं को गले लगाया और ख़ुशी का गीत गया,
मैं अपनी ही गोद में सुख सपनो में खो गया,

एक फेरीवाला कोई मतवाला गली में आया और  चिल्लाया,
मैं ने पूछा उसके लिए वो क्या कुछ था लाया,
दिखा के आईना वो मुस्कुराया, देख के उसे मैं हंस ना पाया,
था वो जादूगर, जादू सा कर गया,
ईधर मैं था खड़ा न सांस रुकी न तडपा, लेकिन मर गया,

चलो  अच्छा ही हुआ जो था नहीं अपना, अपने घर गया,
आज मैं मर गया,
हाँ.... आज 'मैं' मर गया




No comments:

Post a Comment