हैरान हूँ ये खिला फूल देखकर,
जाने तुम्हे क्योंकर अचम्भा नहीं होता,
ये जां का बीज बोटा है कौन, पता नहीं,
असल तो मौत है उसका सदमा नहीं होता,
मंजिल से वाकफियत है पुरानी मेरी, पर,
ये राहगुज़र क्यों है बयां नहीं होता,
तुम्हे रूखसत करूँ तो कैसे करूँ मनीष,
जहाँ मैं हूँ वहां कोई जुदा नहीं होता
-मनीष
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