ये कौन है जो मुझे जिन्दा रखे है, मेरे मुख से बोले, मेरी निगाहों से निगाह भरे है,
ये कौन है जो मैं चाहूँ वो करे है, मैं खींचता रस्सी कुँए की, वो पानी भरे है,
ये कौन है मेरा अपना, मुझसे ही पर्दा करे है,
एहसान किये जाए मुझपर और मासूम बने है,
ये कौन जो रोके गुनाहों से, मेरा मुंसिफ बने है,
दीवाना करके भी ना छोड़ेगा शायद, दुश्मन भी अपना सा लगे है,
झूठ की मुश्क आई रिश्तो के पुलाव से, कौन पराये कौन सगे है,
ये कौन है जो मेरे सोने के बाद भी, भीतर जगे है,
ये कौन है जो मांगे नहीं कुछ भी कभी, बेशुमार प्यार करे है,
इन खाली कब्रों को इंतज़ार है उन लम्हों का, जो एक-एक कर मरे है,
खंडहर के अँधेरे कोनो से क्या डरना, ये जो उजाला करे है,
मुझे मेरे घर का वो तहखाना मिल गया दोस्तों,
जहाँ हर कोई जाने से, न जाने क्यों डरे है,
ये कौन है....?
-मनीष
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