Wednesday, March 28, 2012

आओ फूलों का हार बनाये




तुम खुशियों के लिए यत्न करोगे, तो स्वयं दुःख धुएं में घिरा पाओगे, 
मत रखो रौशनी में सदा रहने की चाहत, काली परछांई को न्योता दे आओगे,


डर मौत से, जीवन से प्यार क्यों दोस्तों, 
आओ फूलों का हार बनाये उसके लिए, जिसे एक दिन गले से लगाओगे,
पानी से रोज़ नहाने वालों, दिल से कब नहाओगे, 
फूल खिला नहीं है तुम्हारे खुश होने के लिए,
संदेश दे रहा तुम कमल सा कब खिल पाओगे,


ओ बहते दरिया, अपना हुनर मत पूछो तुम,
जिधर भी चल पड़ोगे, नया रास्ता बनाओगे,
निर्लज्ज क्रोध में, शर्म प्यार में है कैसे कहो,
उलटी रीत चलाकर देखो, तुम मसीहा बन जाओगे,
बाग़ में फूल उसको अर्पित है पहले ही से,
तुम तोड़ कर उसे फिर मंदिर में चड़ा आओगे,


तारीफ़ न करो तुम उसकी, उसका नृत्य देखकर,
खुश होना ही होगा उसे, जब तुम नृत्य बन जाओगे,
एक गोरा एक काला बच्चा, गम-खुशियों में भेद है क्या,
अंग लगा दोनों को चुमों, अच्छे पिता बन जाओगे,


आओ फूलों का हार बनाये उसके लिए,
जिसे एक दिन गले लगाओगे.


-मनीष 





No comments:

Post a Comment