Monday, March 12, 2012

लोग सुनते कहाँ है

ये मत कहो की हम चुप रहते हैं,
लोग सुनते कहाँ है जब हम कहते हैं,
क्यों प्यासे प्यासे चिल्लाते हो,
देखो हम सागर में रहते हैं,
मुझे दवा देने से परहेज़ कहाँ है दोस्तों,
तुम जानो तो की हम बीमार रहते हैं,
सदियों से वोही एक सवाल लोगों ने पूछे मुझसे,
हम कहते नहीं थके लोग सुनके थक रहते हैं,
प्यास बता देगी तुम कितना पानी पियोगे,
चूक ना जाना सुनो जो ये सन्नाटे कहते हैं,
लोग पागल कहें, फेंके पत्थर मुझ पर, समझे नहीं क्यों,
 तुम्हारा मोहल्ला रोशन करने को ही हम अपना घर जलाये रहते हैं,
मेरे कटोरे के कंकरों को हँसते लोग देख मैं हैरान हूँ,
वैसे ही तो है ये भी जैसे वो अंगूठी में पहना करते हैं,


ऐ खुदा तू इनकी दुआएं कबूल क्यों करता है,
ये भूल ही जाते है जब दैरो-हरम में बसते हैं,
मैं जो चुप हूँ बस नमाज़ कि अदायगी बदल ली मैंने,
काफ़िर नाखुदा हो गया हूँ लोग समझ लिया करते हैं,
नया जितना उतना ही पुराना मेरा धर्म सभी में आम है,
जब दिल ईबादत का होता है तो पानी पी लिया करते हैं,
गोया चुप कहाँ रहते हैं हम तो दुआ मांगते रहते हैं,
लोग सुनते कहाँ हैं जब हम कुछ कहते हैं
 - मनीष




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